करुणा और दुःखः दुख से राहत में बौद्ध अंतर्दृष्टि
Author(s): डॉ. शंभु दत्त झा
Abstract: बौद्ध धर्म, जिसका मूल सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के उपदेशों से है, एक महत्वपूर्ण धर्मिक और दार्शनिक परंपरा है जिसमें दुःख के विषय में गहरा विचार किया जाता है। इस धर्म के मुख्य उद्देश्य मानव दुःख से मुक्ति प्राप्त करना है, और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ‘‘करुणा‘‘ नामक भावना महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। करुणा एक गहरी सहानुभूति और दया की भावना है जो दुःख से प्रभावित होने वाले लोगों के प्रति व्यक्त की जाती है। इस लेख में, हम ‘‘करुणा‘‘ और ‘‘दुःख‘‘ के महत्वपूर्ण संबंधों की चर्चा करेंगे और देखेंगे कि बौद्ध अंतर्दृष्टि कैसे दुःख से राहत प्राप्त करने में मदद करती है। दुःख का मूल कारण तन्हा या आत्मक्लेश माना जाता है, जिसका मतलब है कि दुःख जीवन में आसक्ति और मोह के कारण होता है। बौद्ध अंतर्दृष्टि और विपश्याना के माध्यम से, व्यक्ति अपने दुःख को समझता है और उसे दूर करने के उपाय खोजता है। करुणा का अभ्यास विपश्याना के भाग के रूप में महत्वपूर्ण है, और यह व्यक्ति को दूसरों के दुःख का सामाजिक और मानविक स्वरूप समझने में मदद करता है। इस रूप में, बौद्ध अंतर्दृष्टि और करुणा की भावना, इस उद्देश्य की प्राप्ति के दिशानिर्देश के रूप में सेवा करती हैं, और व्यक्ति को दुःख से मुक्ति प्राप्त करने में मदद करती है।
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How to cite this article:
डॉ. शंभु दत्त झा. करुणा और दुःखः दुख से राहत में बौद्ध अंतर्दृष्टि. Int J Multidiscip Trends 2023;5(3):46-49.