International Journal of Multidisciplinary Trends
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2023, Vol. 5, Issue 3, Part A

भारत में स्थानीय स्वशासन: पंचायती राज


Author(s): मुकेश कुमार लोछब

Abstract: भारत की 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है। इसलिए ग्रामीण स्तर पर स्वशासन का विशेष महत्व है। लोकतंत्र की वास्तविक सफलता तब है जब शासन के सभी स्तरों पर जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो। भारत में अंग्रेजी उपनिवेशवाद के समय से ही स्थानीय शासन के महत्व को समझा जाने लगा था। प्रशासन की इकाई जिला स्थापित की गई थी एवं इसकी प्रशासन व्यवस्था जिलाधिकारी के अधीन थी। वर्ष 1882 में लार्ड रिपन के शासन के कार्यकाल में स्थानीय स्तर पर प्रशासन में लोगों को सम्मिलित करने के कुछ प्रयास किए गए एवं जिला बोर्डों की स्थापना की गई। राष्ट्रीय आंदोलन द्वारा महत्व दिए जाने एवं ब्रिटिश शासन द्वारा लोगों को अपने प्रशासन में सम्मिलित करने के लिए 1930 एवं 1940 में अनेक प्रांतों में पंचायती राज संबंधी कानून बनाए गए। गौरतलब है कि संविधान के प्रथम प्रारूप में पंचायती राज व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं था। गांधी जी के दबाव के परिणामस्वरूप इसे संविधान के राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 40 में स्थान दिया गया। स्थानीय शासन द्वारा स्वशासन की वुवस्था को स्थानीय स्वायत्त शासन कहते हैं। स्थानीय स्वायत्त शासन के दो मूल कारण हैं- पहला, यह व्यवस्था शासन को निचले स्तर तक लोकतांत्रिक बनाती है; दूसरा, स्थानीय लोगों की भागीदारी सक्षम बनती है, साथ ही लोगों को शासन की कला का ज्ञान होता है। स्थानीय स्वशासन में स्थानीय लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वे स्थानीय समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और उसके समाधान को भी आसानी से ढूंढ सकते हैं। अतः स्थानीय स्व-शासन का तात्पर्य है- स्थानीय लोगों की भागीदारी द्वारा स्थानीय शासन की व्यवस्था सुचारू रूप से करना और उस व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाना, जिससे समस्या का निदान भी हो और लोकतांत्रिक स्वरूप की निचले स्तर तक स्वस्थ व्यवस्था भी स्थापित हो।

Pages: 39-42 | Views: 27 | Downloads: 18

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How to cite this article:
मुकेश कुमार लोछब. भारत में स्थानीय स्वशासन: पंचायती राज. Int J Multidiscip Trends 2023;5(3):39-42.
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