International Journal of Multidisciplinary Trends
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2025, Vol. 7, Issue 9, Part A

प्रकृति और मानव का वैदिक सामंजस्य


Author(s): डॉ. तृप्ति दहरी

Abstract: यह शोध-पत्र वैदिक साहित्य के आलोक में संपोषित विकास की अवधारणा का विवेचन करता है। आधुनिक युग में ‘Sustainable Development’ पर्यावरण संरक्षण का वैश्विक सूत्र बन चुका है, किंतु इसका वैचारिक आधार भारतीय ऋषि परंपरा में प्राचीनकाल से विद्यमान है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथों एवं स्मृतियों में मानव और प्रकृति के गहन तादात्म्य का प्रतिपादन हुआ है। यज्ञ, अहिंसा, संयम, वृक्षारोपण और पंचमहाभूतों के संतुलन के द्वारा जीवन को पर्यावरणोपयुक्त बनाने का संदेश मिलता है। रामायण, महाभारत, कालिदास तथा पुराणों में प्रकृति-पूजन और संरक्षण की अनेक विधियाँ उल्लिखित हैं। इस प्रकार, वैदिक चिंतन न केवल धार्मिक या दार्शनिक महत्व रखता है, बल्कि आज की पर्यावरणीय चुनौतियों का व्यावहारिक समाधान भी प्रदान करता है। शोध का निष्कर्ष है कि यदि वैश्विक स्तर पर भारतीय वैदिक पर्यावरण-दर्शन को अपनाया जाए, तो ‘संपोषित विकास’ संभव हो सकता है।

DOI: 10.22271/multi.2025.v7.i9a.775

Pages: 24-28 | Views: 61 | Downloads: 13

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How to cite this article:
डॉ. तृप्ति दहरी. प्रकृति और मानव का वैदिक सामंजस्य. Int J Multidiscip Trends 2025;7(9):24-28. DOI: 10.22271/multi.2025.v7.i9a.775
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