International Journal of Multidisciplinary Trends
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2025, Vol. 7, Issue 8, Part B

स्वातन्त्रयोत्तर मैथिली कविता मे नारी विमर्श


Author(s): मिथिलेश कुमार

Abstract:
पृष्ठभूमि: भारतीय साहित्य ने सदैव राष्ट्र की संघर्षगाथाओं, सांस्कृतिक परिवर्तनों तथा लिंग-परक दृष्टिकोणों को अभिव्यक्ति दी है। मैथिली काव्य, क्षेत्रीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण धारा के रूप में, स्वतंत्रता आंदोलन और उसके पश्चात महिलाओं की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान को समझने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यद्यपि समाज और साहित्य दोनों में महिलाओं की स्थिति हाशिए पर रही, फिर भी काव्य में वे प्रायः त्याग, संघर्ष और परंपरा की ध्वजवाहक के रूप में चित्रित हुईं।
उद्देश्य: इस शोध का उद्देश्य मैथिली कविता में महिला-प्रतिनिधित्व का आलोचनात्मक अध्ययन करना है। प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैंदृ
  • चयनित मैथिली कविताओं में महिलाओं की छवि का विश्लेषण करना।
  • स्वतंत्रता संग्राम एवं सामाजिक आंदोलनों का इन चित्रणों पर प्रभाव देखना।
  • कविता में महिलाओं की द्वैध भूमिकाकृएक ओर आदर्श प्रतीक और दूसरी ओर सामाजिक अस्तित्वकृका मूल्यांकन करना।

कार्यविधि: यह अध्ययन गुणात्मक एवं व्याख्यात्मक दृष्टिकोण पर आधारित है। स्वतंत्रता आंदोलन के काल एवं उसके पश्चात रचित प्रतिनिधि मैथिली कविताओं का पाठ-विश्लेषण किया गया। विद्याति, महाकवि चंदा झा तथा अन्य समकालीन कवियों की रचनाओं को आधार बनाया गया। साथ ही साहित्येतिहास, आलोचनात्मक निबंधों एवं संकलनों का सहारा लेकर विषयगत प्रवृत्तियों को संदर्भित किया गया।
परिणाम: विश्लेषण से स्पष्ट हुआ कि मैथिली काव्य में महिलाएँ प्रायः माँ, पत्नी अथवा त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में प्रस्तुत हुईं, जो राष्ट्रवादी एवं पारंपरिक आदर्शों से मेल खाती हैं। किन्तु कुछ कवियों ने यथार्थपरक चित्रण भी किया, जिसमें महिलाओं की शिक्षा की ओर बढ़ती रुचि, सामाजिक बंधनों से संघर्ष और आत्मपरक पहचान की झलक मिलती है। यह द्वैत दर्शाता है कि कविता में मिथकीय आदर्श से आगे बढ़कर वास्तविक जीवन की चुनौतियों को भी स्वर दिया गया।
निष्कर्ष: अध्ययन से निष्कर्ष निकलता है कि मैथिली कविता ने एक ओर परंपरागत लिंग-मान्यताओं को पुष्ट किया, वहीं दूसरी ओर महिलाओं की सामाजिक भूमिका और उनके आत्मबोध को भी अभिव्यक्ति दी। इस प्रकार यह काव्य न केवल सांस्कृतिक प्रतीकवाद का संवाहक है, बल्कि बदलते सामाजिक परिदृश्य में महिला-अस्मिता को नए सिरे से परिभाषित करने का माध्यम भी है।



DOI: 10.22271/multi.2025.v7.i8b.757

Pages: 79-81 | Views: 159 | Downloads: 28

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How to cite this article:
मिथिलेश कुमार. स्वातन्त्रयोत्तर मैथिली कविता मे नारी विमर्श. Int J Multidiscip Trends 2025;7(8):79-81. DOI: 10.22271/multi.2025.v7.i8b.757
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