Abstract: विगत वर्षों के दौरान राज्य सरकार ने बिहार में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र के विस्तार के लिए दोमुखी रणनीति विकसित की है। एक. बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति 2016, का क्रियान्वयन करके औद्योगिक उत्पादन प्रणाली में बड़े पैमाने पर पूँजी आकर्षित करना, और राज्य में औद्योगिक वृद्धि को सुगम बनाने के लिए संस्थाओं का सहयोगी ढांचा तैयार करना और दूसरा, राज्य सरकार ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अपने उद्यमों की स्थापना के लिए कामकाजी आबादी के विभिन्न हिस्सों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न नीतियाँ अपनाई हैं और योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया है। आम तौर पर लघु उद्यम क्षेत्र श्रम-प्रधान है इसलिए उद्यमों का फैलाव होने से राज्य की विशेष जरूरतों की पूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होता है। द्वितीयक क्षेत्र की वृद्धि के लिए चार महत्वपूर्ण उद्योग खनन एवं उत्खनन; विनिर्माण; विद्युत, गैस, जलापूर्ति एवं अन्य जनोपयोगी सेवाएँ (ईजीडब्ल्यूयूएस) तथा निर्माण हैं। हालाँकि सभी उद्योग क्षेत्रों की वृद्धि में विगत वर्षों के दौरान काफी उतार-चढ़ाव रहा है। गत पाँच वर्षों (2017-18 से 2021-22 तक) में खनन एवं उत्खनन की वार्षिक वृद्धि दर में 2019-20 के सर्वाधिक 275.5 प्रतिशत से लेकर 2020-21 के - 84.7 प्रतिशत तक उतार-चढ़ाव रहा। अन्य क्षेत्रों में इतना अधिक उतार-चढ़ाव नहीं आया। विगत वर्षों के दौरान द्वितीयक क्षेत्र की वृद्धि और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) द्वारा मापी जाने वाली राज्य की समग्र वृद्धि के बीच सशक्त सहसंबंध रहा है। इसका अर्थ हुआ कि द्वितीयक क्षेत्र के उद्योग बिहार में सभी आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण वाहक हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, बिहार के मामले में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान लगभग 20 प्रतिशत के आसपास गतिरुद्ध रहा है। मूल्यवर्धन के मुख्य योगदाता विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र थे। साथ ही, राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) के आँकड़ों की गणना से पता चलता है कि 2020-21 से 2021-22 के बीच निर्माण क्षेत्र 12 प्रतिशत की दर से बढ़ा जबकि इस अवधि में विनिर्माण और विद्युत, गैस, जलापूर्ति एवं अन्य जनोपयोगी सेवाएँ (ईजीडब्ल्यूयूएस) की वृद्धि दरें 6-6 प्रतिशत रहीं। वर्ष 2020-21 से 2021-22 के बीच खनन एवं उत्खनन के सकल राज्यगत मूल्यवर्धन निरपेक्ष गिरावट आई।