नकदी रहित अर्थव्यवस्था भारत के आर्थिक विकास का संवाहक
Author(s): रूबी कुमारी
Abstract: भारतीयों की नकदी पर निर्भरता अन्य देश के लोगों से कहीं ज्यादा है। भारत में वर्ष 2016 के अनुसार लगभग 85 प्रतिशत लोग लेन-देन नकद करते थे जिसका जीडीपी में 67 प्रतिशत एवं श्रम बाजार में 85 से 90 प्रतिशत योगदान था। भारतीय जीडीपी में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का योगदान लगभग 37 प्रतिशत है। जबकि भारत की आधी से ज्यादा आबादी गाँवों में रहती है। इतना ही नही लगभग 85 प्रतिशत लोगों की मजदूरी नकद रूप में मिलती है जो भारत की अर्थव्यवस्था का नकदी पर निर्भरता को दर्शता है। नकदी रहित भारत की शुरूआत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने की थी। 08 नवम्बर 2016 की रात से भारत में 500 और 1000 रूपये के नोटों को बंद कर दिया गया। यह कदम नकदी रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सरकार का पहला कदम था। दरअसल यह आवश्यक भी था क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा नकदी संचालन हो रहा था। वर्ष 2014 में यह जीडीपी का 12.42 प्रतिशत था जबकि चीन और ब्राजील में 9.47 प्रतिशत तथा 04 प्रतिशत ही था। नकद संचालन में भारतीय रिजर्व बैंक और वाणिज्यिक बैंकों का सालाना खर्च 21,000 करोड़ रूपए आता था। कैशलेस अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह नही के बराबर हो जाए तथा सभी लेन-देन डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड, तत्काल भुगतान सेवा (IMPS), नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर (NEFT) और रीयल टाइम ग्रास सेटलमेंट (RTGS) जैसे इलेक्ट्रॉनिक चैनलों एवं एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) जैसे भुगतान माध्यमों से होने लगे हैं। वित्तीय वर्ष 2021 में भारत में डिजिटल भुगतान 53 अरब भारतीय रूपये तक पहुंच गया है। यह वित्तीय वर्ष 2018 में 20.7 अरब भारतीय रूपये से उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है। कैशलेस भुगतान के विकल्पों में से भारत इंटरफेस फॉर मनी (BHIM) ने 2018 के डेबिट कार्ड से भुगतान को पीछे छोड़ दिया। भीम लेनदेन का मूल्य 2018 से 2021 के बीच काफी बढ़ गया है, जबकि डेबिट कार्ड से भुगतान 2019 से स्थिर स्तर पर है, तो यह मान लिया जाये कि यह स्थिति कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है। भारत का नकद रहित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ता कदम विकसित भारत की ओर बढ़ता कदम माना जा सकता है।