मध्य प्रदेश राज्य में जनजातियों के कल्याण में शासकीय विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं का प्रभाव
Author(s): दुबे प्रीती, प्रभाकर सिंह
Abstract: जनजातियों के अधिकांश संसाधन अविकसित व अगम्य क्षेत्रों में हैं। ये लोग दूर-दराज की बस्तियों व गाँवों में रहते हैं। आजकल, इनकी एक छोटी संख्या कस्बों, शहरों व नगरो में भी रहने लगी है। जनजातीय विकास दर की प्रक्रिया धीमी है। इस मंद गति के लिए इनकी स्वयं की स्थितियाँ व सीमाएँ जिम्मेदार हैं। विभिन्न संघीय एवं राज्य कानूनों के तहत जनजातियों को कई अधिकार व रियायतें दी गई हैं। लेकिन प्रवर्तन एजेंसियों की अज्ञानता व उदासीनता के कारण, इन्हें इन कानूनों से मिलने वाले लाभों से वंचित रखा जा रहा है। विकास कार्यक्रमों को संचालित करने वाली प्रवर्तन एजेंसियों की बहुलता ने समस्या को और अधिक बढ़ा दिया है। कई बार ये ऐजेसियाँ अपने प्रयासों का समन्वय करने में असमर्थ होती हैं या फिर लंबी अवधि तक के कार्यक्रमों का पालन करने में विफल रहती हैं। वास्तव में, सरकार द्वारा किये गये प्रयासों के बावजूद भी योजनाओं का लाभ जरूरतमंद गरीब लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है। इसके लिये मूल समस्या संसाधनों के कमी की नहीं है, बल्कि समस्या कुप्रबंधन की है। स्वतंत्रता के पूर्व, देश के नेता व समाज सुधारकों ने भी जनजातियों के कल्याण के महत्व को समझा और देश के आजाद होने के बाद संविधान निर्माण के समय संविधान में इनके लिए विशेष प्रावधान निर्मित किये गये हैं। प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही जनजातीय लोगों के प्रति चिंता रही है। योजना काल के समय से ही जनजातियों के कल्याण के लिए धनराशि निर्धारित की गई है। उक्त पृष्ठभूमि में, वर्तमान अध्ययन जनजातियों के समग्र विकास पर केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न विकास कार्यक्रमों के प्रभाव की समीक्षा की गई है।
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How to cite this article:
दुबे प्रीती, प्रभाकर सिंह. मध्य प्रदेश राज्य में जनजातियों के कल्याण में शासकीय विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं का प्रभाव. Int J Multidiscip Trends 2025;7(11):91-95.