International Journal of Multidisciplinary Trends
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2025, Vol. 7, Issue 1, Part A

भक्ति आंदोलन का इतिहास और उसका समाज पर प्रभाव


Author(s): अवध नारायण

Abstract: भक्ति आंदोलन भारत के मध्यकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक आंदोलन था, जिसने न केवल धार्मिक जीवन को नया स्वरूप दिया, बल्कि सामाजिक संरचना को भी गहराई से प्रभावित किया। यह आंदोलन भारतीय समाज में व्याप्त ऊँच-नीच, जातिवाद, धार्मिक रूढ़ियों और ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ एक सशक्त प्रतिरोध था। इसकी शुरुआत दक्षिण भारत में 7वीं-9वीं शताब्दी के बीच आलवार और नायनार संतों से हुई और बाद में यह उत्तर भारत में कबीर, तुलसीदास, सूरदास, मीरा बाई, गुरु नानक आदि संतों के माध्यम से फैल गया।
भक्ति आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसने ईश्वर की भक्ति को जन्म, जाति या लिंग के बजाय समर्पण और प्रेम पर आधारित किया। संत कवियों ने क्षेत्रीय भाषाओं में रचनाएँ कर के ज्ञान और भक्ति को आमजन तक पहुँचाया, जिससे एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की स्थिति उत्पन्न हुई। इस आंदोलन ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया, स्त्रियों को धार्मिक आत्मनिर्भरता की राह दिखाई, और एक समतामूलक समाज के निर्माण की नींव रखी।इस शोध पत्र में भक्ति आंदोलन के ऐतिहासिक उद्भव, प्रमुख संतों के विचार और योगदान, सामाजिक संरचना पर इसके प्रभाव तथा इसके साहित्यिक योगदान का समग्र विश्लेषण किया गया है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि भक्ति आंदोलन केवल धार्मिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का युगांतरकारी प्रयास था, जिसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।


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How to cite this article:
अवध नारायण. भक्ति आंदोलन का इतिहास और उसका समाज पर प्रभाव. Int J Multidiscip Trends 2025;7(1):38-43.
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