उषा प्रियम्वदा की कहानियों में नारी स्वतन्त्रता की संकल्पना
Author(s): राजकुमार
Abstract: नारी चाहे सभी भूमिकाओं में स्वतन्त्र होने की कामना करे, पर, मां रूप में वह भावनात्मक, रागात्मक, आत्मिक रूप से बंधी हुई है। सन्तान द्वारा किया गया ठण्डा व्यवहार उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाता है। बच्चे जब उससे किसी कार्य के लिए नहीं कहते हैं, उसकी रूटीन में बाधा नहीं डालते हैं, मां के बनाए पकवान शिष्टतावश चख भर लेते हैं तो वह मर्माहत होकर रह जाती है। वह जो परम्परागत मां की भांति चाहती है कि बच्चे उससे लाड़-दुलार करें, वह उन्हें लेकर व्यस्त हो जाए, तरह-तरह के व्यंजन बनाए।