18वीं शताब्दी में राजस्थान के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रः एक अध्ययन
Author(s): भारती मीना
Abstract: यह अध्ययन 18वीं शताब्दी के राजस्थान के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों जैसे बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर, जयपुर, अजमेर, शेखावाटी, नागौर, उदयपुर तथा कोटा का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत करता है और मुगल साम्राज्य के पतन, मराठा आक्रमण एवं औपनिवेशिक हस्तक्षेप के बीच क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आये पुनर्संरचनात्मक परिवर्तनों को रेखांकित करता है। प्राथमिक अभिलेख (बही-खातों, फरमानों, राहदारी रसीदों) तथा द्वितीयक साहित्य के सहारे शोध से स्पष्ट होता है कि राजस्थान की रणनीतिक भौगोलिक स्थिति ने दिल्ली-अहमदाबाद, आगरा-मालवा, दिल्ली-मुल्तान जैसे राजमार्गों के संगम पर स्थित इन नगरों को उत्तर-पश्चिम भारत के वाणिज्यिक नेटवर्क का केन्द्रीय घटक बना दिया। नमक, अफ़ीम, कपास, ऊन, तांबा, ऊँट-घोड़े, कैलिको-प्रिण्ट्स और हाथकरघा वस्त्र राजस्थान से निर्यात-मुख्य वस्तुएँ रहीं, जबकि मसाले, चीनी, चाय, रेशम व कीमती पत्थर आयातित होते थे। महाजन, ओसवाल, बोहरा, साहूकार, बनजारे, चारण-भाट और राजपूत ठिकानेदारों सहित विविध व्यापारिक समुदायों के सहयोग से ‘बनिया-राज्य’ जैसी संरचनाएँ उभरीं जिन्होंने अनाज से लेकर दूरगामी कारवां व्यापार तक पर नियंत्रण स्थापित किया। राजपूत शासकों ने सैरजिहात, मापा और राहदारी कर घटाते हुए परवाने और सुरक्षा दस्ते प्रदान कर व्यापार को प्रोत्साहित किया; साप्ताहिक हटवाड़, वार्षिक मेलों और राज्य-प्रायोजित मंडियों ने ग्रामीण-शहरी अर्थव्यवस्था को जोड़ा। यद्यपि मराठा छापों ने कुछ कालखण्डों में मार्गों को बाधित किया, व्यापारी नेटवर्कों की अनुकूलन क्षमता ने शीघ्र ही व्यापार प्रवाह बहाल कर दिया। निष्कर्षतः, 18वीं-सदीय राजस्थान को ‘अंधकार युग’ कहना भ्रामक है; यह काल व्यापक व्यावसायीकरण, नकदीकरण और सामाजिक-आर्थिक उत्थान का साक्षी रहा जिसने आधुनिक राजस्थान की आर्थिक नींव तैयार की।
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भारती मीना. 18वीं शताब्दी में राजस्थान के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रः एक अध्ययन. Int J Multidiscip Trends 2024;6(7):30-33.