रामकुमार वर्मा के काव्य में दिव्यता और प्रकृतिः सौंदर्य, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक परंपरा का विश्लेषण
Author(s): डॉ. किरण
Abstract: रामकुमार वर्मा का काव्य हिंदी साहित्य में प्रकृति, दिव्यता और सांस्कृतिक चेतना के अद्भुत समन्वय का सशक्त उदाहरण है। उनके काव्य में प्रकृति केवल प्राकृतिक दृश्यों या सौंदर्य तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें जीवन के हर रंग, मानवीय अनुभूति, सांस्कृतिक परंपरा और अध्यात्म का अनूठा समावेश मिलता है। वर्मा ने अपने काव्य में भारतीय संस्कृति की गहराई, देवी-देवताओं के प्रतीक, नदियों और पर्वतों की पवित्रता, तथा प्रकृति की विविधता को बड़ी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। उनके कविताओं में नदी का प्रवाह, पर्वतों की विशालता, ऋतुओं का परिवर्तन, सूर्य-चंद्रमा का प्रभाव-ये सब मनुष्य के जीवन, उसकी भावनाओं और विचारों से जुड़कर प्रतीकात्मक रूप में उभरते हैं। वर्मा के काव्य में गहन अध्यात्म-बोध, जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता प्रमुखता से दृष्टिगोचर होती है। उनके काव्य में ‘गंगा’, ‘यमुना’ जैसी नदियाँ केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना की वाहक के रूप में उभरती हैं। उनकी कविता में भारतीय लोकपरंपरा, धार्मिक आस्था, और सामाजिक संबंधों की झलक स्पष्ट रूप से मिलती है। शोधपत्र में इन तमाम पक्षों का गहन विश्लेषण करते हुए यह बताया गया है कि रामकुमार वर्मा का काव्य न केवल साहित्यिक सौंदर्य का प्रमाण है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत की जीवंत प्रस्तुति भी है, जिसमें प्रकृति और मानवता का गहरा संबंध दिखता है।
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डॉ. किरण. रामकुमार वर्मा के काव्य में दिव्यता और प्रकृतिः सौंदर्य, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक परंपरा का विश्लेषण. Int J Multidiscip Trends 2024;6(2):48-52.