प्रेमचन्द के उपन्यासों में मुस्लिम समाज का चित्रण
Author(s): प्रो0 रश्मि कुमार
Abstract: प्रेमचन्द हर प्रकार की साम्प्रदायिकता के विरूद्ध हैं, चाहे हिन्दू साम्प्रदायिकता हो या मुस्लिम साम्प्रदायिकता। 1930 ई0 में अल्लामा न्याज़ फतेहपुरी ने हिन्दुस्तानी ऐकेडमी इलाहाबाद, से हिन्दुओं को उर्दू अनुवाद का कार्य मिलने पर विवाद उठाया कि उन्हें यह काम क्यों दिया गयाः प्रेमचन्द को न्याज़ साहब की सोच तीर के समान लगी और इस विचारधारा की बखिया उधेड़ दी कि उर्दू मात्रा मुसलमानों की भाषा है, हिन्दुओं की भाषा है, उन्होंने तीव्र एवं कटु लहजे में लिखा-‘‘उर्दू न मुसलमानों की बपौती है न हिन्दुओं की, उसको लिखने-पढ़ने का हक़ दोनों को हासिल है। हिन्दुओं का उस पर हक़ पहला है कि वह हिन्दी की एक शाखा है। हिन्दी पानी और मिट्टी से उसकी रचना हुई है और सिर्फ थोड़े-से अरबी-फ़ारसी शब्दों के दाखि़ल कर देने से उसकी असलियत नहंी बदल सकती, उसी तरह जैसे पहनावा बदलने से राष्ट्रीयता या जाति नहीं बदल सकती।‘‘
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प्रो0 रश्मि कुमार. प्रेमचन्द के उपन्यासों में मुस्लिम समाज का चित्रण. Int J Multidiscip Trends 2023;5(9):09-13.