Abstract: “वसुधैव कुटुंबकम्’’ ‘यत्र विश्वम् भवत्येक नीडम्’’ “संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्’’ “सर्वे भवन्तु सुखिनः’ इत्यादि अनेक मंत्रों के द्वारा भारतीय मनीषियों ने संपूर्ण विश्व के लिए जो समरसता के सूत्र दिया थे उनमें सार्वभौमिक कल्याण की भावना निहित रही। आज न केवल भारतीय समाज अपितु विश्व के लगभग सभी देश संप्रदायों वर्गों समूहों में आपसी तनाव अहिंसा की भूत वृद्धि हो रही है इस संकटापन्न स्थिति में विश्व शांति की खोज में है।
मानव परिवार समाज विश्व सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं विश्व में जिन मूल्यों के लिए संघर्ष है वही संघर्ष समाज परिवार और यहां तक की मानव के अपने अंतःकरण में भी है और जब मानव आंतरिक रूप से समरसता को प्राप्त होगा तभी वह परिवार समाज में सामंजस्य की धारा को प्रवाहित कर सकेगा स्वर तथा पर की भावना से परे आत्म विस्तार का संदेश देने वाले श्रीमद् भागवत गीता के संदेश आज की स्थिति में अत्यंत प्रासंगिक हैं जहां संपूर्ण विश्व समरसता की बात कर रहा है।