जनसंख्या का पर्यावरण व कृषि क्रियाओं पर पडने वालें प्रभावों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Author(s): Dr. Poonam Saini
Abstract:
कृषि कार्याे के लिये जिस प्रकार जल व मृदा एक प्रमुख संसाधन है उसी प्रकार कृषि के लिये मानव भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। अतः कृषि विकास के लिये यह भी एक महत्वपूर्ण संसाधन है। यद्यपि वर्तमान समय में आधुनिक मशीनों व उपकरणों के द्वारा कृषि कार्य किया जाता है लेकिन पूर्ण रूप से मशीनों के द्वारा यह कार्य नही किया जा सकता है। इसमें मानव श्रम की भी उतनी ही भागीदारी है। जितनी की मशीनो की। मशीनों का उपयोग सामान्यतः बड़े-बड़े रूप से समर्थ परिवारों में किया जाता है। वही आज की ऐसे कितने ही गरीब किसान है जो चिलचिलाती धूप में भी खेतों में काम करते है क्योकि उनकी आमदनी इतनी अधिक नही होती है कि वो मशीनों से खेतों पर काम करवा सकें और ना ही उनके खेत इतने बड़े होते है कि वहाॅ मशीनों से कृषि कार्य किया जा सकें। मशीनों का उपयोग मुख्यतः बडे-बडे खेतों में ही आसानी से किया जा सकता है। ऐसे में गरीब किसान स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य मिलकर ही कृषि कार्य करते है व खाद्यान्न उत्पादन करके अपना व अपने परिवान का पेट पालते है। इसकी आजीविका का एक मात्र साधन कृषि ही है। अतः इस प्रकार कहा जा सकता है कि कृषि कार्य हेतु मानव जनसंख्या भी एक महत्वपूर्ण संसाधन है तथा मानव जनसंख्या में वृद्धि का प्रभाव भी कृषि विकास को प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। साथ ही इसका प्रभाव पारिस्थितिकी सन्तुलन तथा पर्यावरण पर भी पडता है अतः इस सन्दर्भ में जनसंख्या क्या है व इसका पर्यावरण तथा कृषि क्रियाओं पर पडने वालें प्रभावों का अध्ययन भी आवश्यक है। साथ ही मानव-पर्यावरण सम्बन्ध भी आवश्यक है। पारिस्थितिकीविदों के अनुसार जनसंख्या से तात्पर्य समान प्रकार के जीवों का सामूहिक होता है जो एक निश्चित स्थान पर रहकर जीवन-यापन करता है अर्थात प्रत्येक जीव चाहे व जीव-जन्तु हो, वनस्पति हो सभी की संख्या होती है और यह संख्या पारिस्थितिकी चक्र द्वारा परिचालित होती है तथा उस चक्र को प्रभावित भी करती है।
Dr. Poonam Saini. जनसंख्या का पर्यावरण व कृषि क्रियाओं पर पडने वालें प्रभावों का विश्लेषणात्मक अध्ययन. Int J Multidiscip Trends 2023;5(1):09-12. DOI: 10.22271/multi.2023.v5.i1a.222