गुरूड पुराण में वर्णित आहार-विहार में स्वस्थवृत की दिनचर्या
Author(s): तारा बाई मीना
Abstract: प्राचीन भारतीय वाङ्मय एवं प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में पुराणों का वही महत्त्व है जो महत्त्व वर्तमान युग में विज्ञान का है। भारतीय वाङ्मय में पुराणों के अतिरिक्त वैदिक साहित्य (संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद) तथा भागवद् गीता और रामायण का भी उतना ही महत्त्व है जितना पुराणों का है। ये विविध ग्रन्थ प्राचीन भारतीय धर्म और जीवन के मूलाधार रहे हैं। जिस प्रकार वैदिक साहित्य की विविध शाखाएँ थी इसी प्रकार वैदिक धर्म की भी विविध धाराएँ इस पवित्र भूमि के विचार क्षेत्र को सींचती रही है। इन्हीं विविध दार्शनिक शाखाओं में पौराणिक शाखा भी अपने वैविध्यपूर्ण ज्ञान के कारण विश्वविश्रुत हुई।
जिस प्रकार वैदिक साहित्य अनेकविध ज्ञानराशियों को अपने में समेटे हुए है उसी प्रकार पुराणसाहित्य भी अनेक प्रकार की ज्ञान विधाओं से आप्लावित है। अट्टारह पुराणों में उसी तत्त्व दृष्टि से जीव-जगत् एवं ईश्वर का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इन सबसे अतिरिक्त आयुर्वेद जैसे अनेक प्रासग्कि विषयों का निरुपण भी इन पुराणों में मिलता है। अग्नि पुराण जिस तरह भारतीय विधाओं का भुवनकोश कहलाता है उसी प्रकार गरुडपुराण भी अनेक विधाओं का आश्रयस्थल है। यद्यपि लोक में गरुडपुराण की प्रसिद्ध श्राद्धकर्मों के सम्पादन के रूप में है तथापि यहाँ अनेक विधाओं का निरूपण है जिनमें आयुर्वेद का भी विशद विवेचन किया गया है। प्रस्तुत शोधपत्र में गरुडपुराण में वर्णित दिनचर्या पर प्रकाश डाला गया है।
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तारा बाई मीना. गुरूड पुराण में वर्णित आहार-विहार में स्वस्थवृत की दिनचर्या. Int J Multidiscip Trends 2023;5(1):03-05.