कला का उद्देष्य एवं सार्थकता
Author(s): पंचम खंडेलवाल
Abstract: भारतीय दृष्टि से कला और सौंदर्य का नित्य सहचर संबंध रहा है। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं है। जिस कलाकृति में सौंदर्य नहीं उसको कला के अंतर्गत रखा ही नहीं जा सकता है। सृष्टा या कलाकार की सौंदर्यमयी सर्जना का नाम ही कला है। क्योंकि भारतीय साहित्यकारों और कलाकारों ने एक-दूसरे से प्रेरणा प्राप्त कर अपने-अपने रचनाविधान को परिपुष्ट किया है, अतः सौंदर्य की जो चाह भारतीय साहित्य में अभिव्यक्त है, भारतीय कला पर भी उसका व्यापक प्रभाव लक्षित है। किंतु यह प्रभाव यूनानी कला की भांति केवल बाह्य परिवेष की अलंकृत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कला के आंतर स्वरूप पर भी चरितार्थ है। भारतीय कलाकारों ने सौंदर्य के आदर्ष पक्ष को ग्रहण किया है, किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि उन्होनंे वस्तुगत सौंदर्य की उपेक्षा की हो। कला में सत्यानुभूति उसका आवष्यक अंग है। तभी तो कलाकृति के द्वारा षुद्ध विचारसृष्टि संभव है। उसी को सौंदर्यबोध कहा गया है। वही कला का व्यापक धर्म है।
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पंचम खंडेलवाल. कला का उद्देष्य एवं सार्थकता. Int J Multidiscip Trends 2022;4(1):59-61.