“महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)“ का क्षेत्रीय समाजार्थिक विश्लेषणः जनपद सुल्तानपुर (उ०प्र०)
Author(s): डॉ0 वीना उपाध्याय
Abstract: भारत की 72 फीसदी आबादी गांवों में रहती है. इसलिए भारत का विकास गांव के विकास पर निर्भर करता है। लेकिन ग्रामीण विकास की राह में कई समस्याएं और चुनौतियां हैं। ग्रामीण बेरोजगारी इनकी प्रमुख समस्याओं में से एक है। आजादी के बाद सरकार ने कई ग्रामीण रोजगार और विकास योजनाएं शुरू की हैं। अनेक कारणों से उपरोक्त सभी योजनाओं का लाभ गरीब लोग समुचित रूप से नहीं उठा सके, भारतीय संसद ने 2005 में एक क्रांतिकारी अनूठा अधिनियम यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) पारित किया। 2 अक्टूबर 2009 को इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे को विकसित करके रोजगार की तलाश में ग्रामीण परिवारों के पलायन को रोकना और ग्रामीण लोगों की आजीविका सुरक्षा को निरंतर आधार पर बढ़ाना है। यह कार्यों की ग्राम स्तरीय योजना और सामाजिक लेखा परीक्षा के तंत्र पर केंद्रित है। यह योजना ग्राम सभा से लेकर केंद्र सरकार तक सहयोगात्मक भागीदारी के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है।
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डॉ0 वीना उपाध्याय. “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)“ का क्षेत्रीय समाजार्थिक विश्लेषणः जनपद सुल्तानपुर (उ०प्र०) . Int J Multidiscip Trends 2021;3(2):109-114.