International Journal of Multidisciplinary Trends
  • Printed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

2021, Vol. 3, Issue 2, Part B

भारतीय दर्शन में वस्तुवादी अवधारणा का एक समीक्षात्मक अध्ययन


Author(s): अभिनन्दन पाण्डेय

Abstract:
वस्तुवादी अवधारणा वह अवधारणा है, जो बताती है कि हमारे अनुभव द्वारा प्रस्तुत जगत ही वस्तुतः सत् है तथा जो सत् ज्ञेय एवं अभिधेय भी है। इसके अनुसार जगत में ज्ञाता, ज्ञान व ज्ञेय तीनों की पृथक सत्ता है तथा उनमें अनुभव होने वाला सम्बन्ध भी वस्तुतः सत् अन्य शब्दों में विषय और विषयी, धर्म और धर्मी, अवयव और अवयवी सभी वास्तविक सत्ता है।
विश्व की विस्तार एवं मूल सत् रूप है अथवा असत् रूप है। यह जिज्ञासा भी दार्शनिकों के चिन्ता का विषय रही है। एक समान् दृष्टिगोचर होने वाले जगत् के बारे में चिन्तों के विचार भेद रहा है। पाश्चात्य दृष्टिकोण में वस्तुवाद प्रत्यवाद के विरोध के संदर्भ में आया।
यर्थाथवाद की वास्तविकता को समझने और भावनाओं से प्रभावित न होने वाला आचरण को वस्तुवाद कहते है। (Oxford Dictionary)
पाश्चात्य संदर्भ में-
ग्रीक दर्शन के पर्मिनाइडीज ने वस्तुवाद की अपनाया जिसके अनुसार ज्ञान के विषय की वास्ताविक सत्ता होती है, प्लेटों ने इस सिद्धान्त का विकास करके संवादिता सिद्धान्त का निर्माण किया जिसके अनुसार वास्तविक ज्ञान वह है जिसके अनुरूप वास्तविक सत्ता की विद्यमान है। मूर व रसेल इत्यादि वस्तुवादी दार्शनिक है।


Pages: 93-95 | Views: 749 | Downloads: 394

Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
अभिनन्दन पाण्डेय. भारतीय दर्शन में वस्तुवादी अवधारणा का एक समीक्षात्मक अध्ययन. Int J Multidiscip Trends 2021;3(2):93-95.
International Journal of Multidisciplinary Trends
Call for book chapter