मारवाड़ के किसान आंदोलन
Author(s): मोनिका रानी] डॉ राजेंद्र कुमार
Abstract: भारत एक कृषि प्रधान देश है भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हमारी आर्थिक और सामाजिक उन्नति का माध्यम सदैव कृषि ही रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश की 54.6% आबादी कृषि तथा कृषि से संबंधित अन्य कार्यों में लगी है। इतने बड़े आबादी वाले देश की अर्थव्यवस्था को चलाने वाला कृषक अन्नदाता जिसकी आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दशा आजादी के 75 वर्षों के बाद वैसी ही बनी हुई है, जैसी स्वतंत्रता से पूर्व थी। वर्तमान समय में भी आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की जिद में लगे हुए किसान सरकार साहूकार और पूंजीपतियों के कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति इतनी वर्षों बाद भी सरकार का गैर जिम्मेदार रवैया किसानों के प्रति वैसा ही है, जो औपनिवेशिक समय में था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ना जाने कितनी सरकारें आई और गई लेकिन उनमें से किसी भी सतारूढ सरकार ने किसानों की सुध नहीं ली। समय-समय पर इन सरकारों ने आर्थिक क्षेत्र में कुछ कानून जरूर पास किए लेकिन उन कानूनों का लाभ पहुंचना किसानों के लिए उतना ही दूर है, जितना आसमान से धरती। संघर्ष किसान के जीवन का अभिन्न हिस्सा है, जिसके बिना कृषक जीवन की कल्पना अधूरी है। इस बात को कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भारत में किसान आंदोलनों का इतिहास अति प्राचीन है। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य से लेकर आज तक किसानों द्वारा समय-समय पर कृषि नीति में परिवर्तन करने का अपने अधिकार को पाने के लिए अलग अलग ढंग से आंदोलन किया।
Pages: 119-123 | Views: 460 | Downloads: 125Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
मोनिका रानी] डॉ राजेंद्र कुमार. मारवाड़ के किसान आंदोलन. Int J Multidiscip Trends 2021;3(2):119-123.