पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ और दीन दयाल उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
Author(s): सनà¥à¤¨à¥€ शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾
Abstract: पंडित दीन दयाल उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ ने अपने जीवन काल में कई नठआयाम सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किठऔर हर कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में अपनी अहम à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆà¥¤ वे à¤à¤• कà¥à¤¶à¤² संगठनकरà¥à¤¤à¤¾ के साथ-साथ अचà¥à¤›à¥‡ पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° और संचारक à¤à¥€ थे। पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का संपादन, पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨, सà¥à¤¤à¤‚ठलेखन, पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• लेखन उनकी रूचि का विषय था। जिसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने विचारों को पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करने के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ लिखने के साथ-साथ बोलकर à¤à¥€ à¤à¤• पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥€ संचारक की à¤à¥‚मिका का निरà¥à¤µà¤¹à¤¨ किया है। à¤à¤• पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के तौर पर दीन दयाल उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ ने पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में नया आयाम सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करते हà¥à¤ यह बतलाया कि जीवन मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की जितनी जरूरत मनà¥à¤·à¥à¤¯ को है, उतनी ही मीडिया को à¤à¥€ है। यह संà¤à¤µ नहीं है कि समाज तो मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के आाधार पर चलने को आगà¥à¤°à¤¹à¥€ हो और उसका मीडिया, फिलà¥à¤®à¥‡à¤‚, पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ कलाà¤à¤‚, पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ नकारातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° कर रही हों। समाज और मनà¥à¤·à¥à¤¯ को पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करने का सबसे पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥€ माधà¥à¤¯à¤® होने के नाते हम इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¸à¥‡ नहीं छोड़ सकते। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€ हमें अपने जीवन मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ जोड़ना होगा, जो मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ और मानवता के विसà¥à¤¤à¤¾à¤° का ही रूप हैं। अगर हम à¤à¤¸à¤¾ मीडिया खड़ा कर पाते हैं तो समाज के बहà¥à¤¤ सारे संकट सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही दूर हो जाà¤à¤‚गे। फिर टीवी बहसों से निषà¥à¤•à¤°à¥à¤· निकलेंगे और खबरें डराने के बजाठजीने का हौंसला देंगी। खबरों का संचार जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• होगा तथा जिंदगी के हर पकà¥à¤· का विचार करेंगी। वे à¤à¤•à¤¾à¤‚गी नहीं होंगी, पूरà¥à¤£ होंगी और शà¥à¤à¤¤à¥à¤¤à¤¾ के à¤à¤¾à¤µ से à¤à¤°à¥€ पूरी होंगी। यहां किसी धारà¥à¤®à¤¿à¤• और आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• मीडिया की बात नहीं हो रही है बलà¥à¤•à¤¿ सिरà¥à¤« उस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ की बात हो रही है जो ‘à¤à¤•à¤¾à¤¤à¥à¤® मानवदरà¥à¤¶à¤¨‘ हमें देता है। सबको साथ लेकर चलने, सबका विकास करने और सबसे कमजोर का सबसे पहले विचार करने की बात है। जहां दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को बनाने वाले सारे अवयव à¤à¤•-दूसरे से जà¥à¥œà¥‡ हैं। जहां सब मिलकर संयà¥à¤•à¥à¤¤ होते हैं और ‘वसà¥à¤§à¤¾‘ को ‘परिवार‘ समà¤à¤¨à¥‡ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ देते हैं। दीन दयाल उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ की समृतियां और उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ विचारदरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤• सपना à¤à¥€ है तो à¤à¥€ इस जमीं को सà¥à¤‚दर बनाने की आकांकà¥à¤·à¤¾ से लबरेज है। उसकी अखंड मंडलाकार रचना का विचार करें तो मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ खà¥à¤¦ अपने उतà¥à¤•à¤°à¥à¤· पर सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होती हà¥à¤ˆ दिखती है। इसके बाद उसका समाज और फिलà¥à¤®à¥‡à¤‚, मीडिया, मूलà¥à¤¯, राह और उसका मन सब à¤à¤• हो जाते हैं। à¤à¤•à¤¾à¤¤à¥à¤® सृषà¥à¤Ÿà¤¿, वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿, परिवेश से जब हम à¤à¤• हो जाते हैं तो पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के बजाठसिरà¥à¤« उतà¥à¤¤à¤° नजर आते हैं और समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं के बजाठसमाधान नजर आते हैं। संकटों के बजाठउतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नजर आने लगता है। दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ ‘à¤à¤•à¤¾à¤¤à¥à¤® मानवदरà¥à¤¶à¤¨‘ की राह पर आ रही है। अपने à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के साथ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ को संयà¥à¤•à¥à¤¤ करने के लिठवह आगे बॠचà¥à¤•à¥€ है। कà¥à¤¯à¤¾ हम धरती पर सà¥à¤µà¤°à¥à¤— उतारने के सपने को अपनी ही जिंदगी में सच होते देखना चाहते हैं तो इस विचार दरà¥à¤¶à¤¨ को पà¥à¤•à¤° और समà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤ जीवन में उतार कर देखना होगा। यह हमें इसलिठकरना है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हमारा जनà¥à¤® à¤à¤¾à¤°à¤¤ की à¤à¥‚मि पर हà¥à¤† है और जिसके पास पीड़ित मानवता को राह दिखाने का सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• दायितà¥à¤µ सदियों से आता रहा है।
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सनà¥à¤¨à¥€ शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾. पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ और दीन दयाल उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯. Int J Multidiscip Trends 2021;3(1):278-281.