मनु द्वारा प्रतिपादित वर्णाश्रम पद्धति पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का विध्वंसीकरण
Author(s): डॉ॰ मंजु चौधरी
Abstract: आज के इस आधुनिक और व्यावहारिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर एक दिन यह अवश्य अनुभव करता है कि हमारे सामाजिक जीवन में नैतिकता की बहुत ही कमी आ गयी है। नैतिकता कोई ऐसा पदार्थ नहीं है जो सीधे-सीधे हर व्यक्ति को दिया जा सकता है। वह ऐसा पदार्थ है जो सभी व्यवहारों में ओत-प्रोत होकर परोक्ष ढंग से प्राप्त हो सकता है। मनु ने गृहाश्रमी के लिए जिन पांच महायज्ञों का विधान किया था उनमें नैतिकता ओत-प्रोत थी जिसके कारण मनुष्य के व्यवहार अपने कुटुम्ब, समाज तथा राज्य में भी प्रायः नैतिक बने रहते थे। मनुस्मृति अपने शुद्ध रूप में वास्तव में एक अर्थशास्त्र है जिसके अनुसार व्यवहार होने पर अधर्म का पनपना कठिन हो जाता है। यह अधर्म ही अनैतिकता है। किन्तु मनुस्मृति ऐसा धर्म ग्रन्थ नहीं है जो किसी सम्प्रदाय या पन्थ को जन्म देने वाला हो। वह केवल सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी कर्तव्यों का विधान करने वाला ग्रन्थ है जिसकी आवश्यकता सदैव रहती है। अतः यह विचारणीय हो सकता है कि मनु ने जो पांच महायज्ञ विहित किये थे वे आज भी प्रासांगिक हैं और यदि है तो आज के पंथनिरपेक्ष राज्य को अपने संविधान को अथवा असंख्यात विधानों में उन महायज्ञों के सार को समाविष्ट करना चाहिए अथवा नहीं।
Pages: 327-330 | Views: 213 | Downloads: 94Download Full Article: Click HereHow to cite this article:
डॉ॰ मंजु चौधरी. मनु द्वारा प्रतिपादित वर्णाश्रम पद्धति पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का विध्वंसीकरण. Int J Multidiscip Trends 2021;3(1):327-330.