भारतीय तर्कशास्त्र में भारतीय न्यायिको का योगदान
Author(s): डॉ. श्रीनिवास मिश्र
Abstract: भारतीय तर्कशास्त्र को न्याय दर्शन या न्याय शास्त्र कहा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखने पर 'तर्क शास्त्र' का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। जब से मनुष्य सभ्य होने का दावा करता है तभी से तर्कशास्त्र का जन्म माना जाता है।
परमतत्त्वकोयाकिसीलौकिकतत्त्वकोभीसमझनेकेलिए'तर्क' कीबड़ीआवश्यकताहोतीहै।इसलिएश्रुतिनेभी'मनन' कोऊँचास्थानदियाहै।बिना'मनन' के'आत्मा' कासाक्षात्कारनहींहोसकताऔरआत्माकासाक्षात्कारहीदर्शनशास्त्रकामुख्यलक्ष्यहै।बुद्धिकेविकासकेलिए'तर्क' कीअपेक्षाहोतीहै।बुद्धिकेहीबलसेसंसारकीवस्तुओंका, सूक्ष्मभावनाओंकातथाऔचिन्त्यपरमतत्त्वकाभी'ज्ञान' हमेंहोताहैऔरइसकार्यमें'तर्क' बहुतसहायकहोताहै।जीवनमेंयहदेखाजाताहैकिकभीआपसमेंऔरदूसरोंकेसाथविचार-विनिमयकियाजाताहै।कभीसत्यबातकेसमर्थनकेलिएऔरकभीअसत्यकेखण्डनकेलिएहम'प्रमाणों' कीसहायतालेतेहैंकिन्तुव्यवहारमेंप्रमाणोंकेसाथ-साथहमें'तर्क' भीदेनापड़ताहै।वस्तुतःकिसीसिद्धांतपरपहुँचनेकेलिएहमें (क) श्रुतियाआगमयाआप्तवाक्य, (ख) तर्क, (ग) साक्षात्स्वानुभव, इनतीनोंकीअपेक्षाहोतीहै।इन्हींको'श्रवण', 'मनन', 'निदिध्यासन' केनामसेश्रुतियोंमेंकहागयाहै।यहाँहमेंध्यानमेंरखनाचाहिएकि'तर्क' कोईस्वतंत्रप्रमाणनहींहै, केवल'तर्क' सेहीहमकिसीनिर्णयपरपहुँचभीनहींसकतेऔरइसलिएकठोपनिषद्' मेंकहागयाहैकेवल'तर्क' केद्वाराआत्माकाज्ञानप्राप्तनहींहोसकता।शंकराचार्यनेब्रह्मसूत्र' केभाष्यमें'तर्क' कातिरस्कारभीकिया, वाक्यपदीयमेंभर्तृहरि' ने'तर्क' केपरिवर्तितहोजानेकीसभीसंभावनाएँभीबताई, किन्तुयहनिश्चितहैकिबिना'तर्क' कीसहायतासेहमनिर्णयपरनहींपहुँचसकते, 'तर्क' प्रमाणोंकासहायकहै।"
'तर्क' कोप्रधानरूपसेध्यानमेंरखकरजगत्केपदार्थोंकाविशेषविचारन्यायशास्त्रअथवातर्कशास्त्रमेंकियागयाहै।तर्कशास्त्रकीव्याख्यापाश्चात्यदर्शनमेंऔरभारतीयदर्शनमेंभिन्न-भिन्नप्रकारसेकीगईहै।साधारणतःतर्कशास्त्रकामतलबहमपाश्चात्यतर्कशास्त्रसेहीलगातेहैं, जोभारतीयतर्कशास्त्रसेअपनाअलगस्वरूपरखताहै।इसलिएपाश्चात्यऔरभारतीयतर्कशास्त्रकोजाननाएवंउसकेअंतरकोजाननाआवश्यकप्रतीतहोताहै।
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डॉ. श्रीनिवास मिश्र. भारतीय तर्कशास्त्र में भारतीय न्यायिको का योगदान. Int J Multidiscip Trends 2021;3(1):130-140.