पारंपरिक मोठिया वस्त्रों की बुनाई एवं सांस्कृतिक महत्व: सरगुजा जिले के विशेष संदर्भ में
Author(s): विश्वासी एक्का
Abstract: स्वाधीनता आंदोलन के समय महात्मा गांधी जी ने स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर जोर दिया, देशवासियों को खादी पहनने को प्रेरित किया अतः घर-घर चरखा चलने लगा, लोगों में स्वावलम्न की चेतना का विकास हुआ और कुटीर उद्योग चलने लगे | मोठिया साड़ी में लाल रंग के धागे से पाड़ या किनारा और आँचल को कलात्मक बनाया जाता है, इस साड़ी की लम्बाई बारह और चौदह हाथ होती है, पहले महिलाएं बंडी की जगह साड़ी को ही लपेटती थीं इसलिए साड़ी लंबी ही बुनी जाती थी, इसे ‘चौदहा’ कहा जाता था | पहले ग्रामीण क्षेत्रों में हथकरघे से बने वस्त्रों का ही चलन था, वहां खेत-खलिहान, जंगल और नदियों तक उनके काम बिखरे होते थे, उन कामों को करते हुए ये मोटे वस्त्र गर्मी हो या बरसात उन्हें सहूलियत ही देते थे | महिलाएं उन मोठिया साड़ियों को एड़ी तक नहीं, घुटने तक ही लपेटती थीं और आंचल का हिस्सा शरीर के ऊपरी हिस्से को ढंकता था | खेतों में काम करना हो, नदी या तालाब से मछलियाँ पकड़ना हो या तो जंगल से लकड़ियां, फल-फूल, कंदमूल एकत्र करना हो, घुटने तक पहनी गई साड़ी से उन्हें बड़ी सहूलियत होती थी |
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विश्वासी एक्का. पारंपरिक मोठिया वस्त्रों की बुनाई एवं सांस्कृतिक महत्व: सरगुजा जिले के विशेष संदर्भ में. Int J Multidiscip Trends 2021;3(1):18-21.